दीर्घ संधि - अक: सवर्णे दीर्घ:, संस्कृत व्याकरण
दीर्घ स्वर संधि
इस पृष्ठ पर हम दीर्घ संधि का अध्ययन करेंगे !
अ + आ = आ --> हिम + आलय = हिमालय
अ + आ =आ--> पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
आ + अ = आ --> विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
आ + आ = आ --> विद्या + आलय = विद्यालय
इ + ई = ई --> गिरि + ईश = गिरीश ; मुनि + ईश = मुनीश
ई + इ = ई --> मही + इंद्र = महींद्र ; नारी + इंदु = नारींदु
ई + ई = ई --> नदी + ईश = नदीश ; मही + ईश = महीश .
उ + ऊ = ऊ --> लघु + ऊर्मि = लघूर्मि ; सिधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि
ऊ + उ = ऊ --> वधू + उत्सव = वधूत्सव ; वधू + उल्लेख = वधूल्लेख
ऊ + ऊ = ऊ --> भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व ; वधू + ऊर्जा = वधूर्जा
दीर्घ संधि के चार नियम होते हैं!
सूत्र-अक: सवर्णे दीर्घ: अर्थात् अक् प्रत्याहार के बाद उसका सवर्ण आये तो दोनो मिलकर दीर्घ बन जाते हैं। ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ के बाद यदि ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ आ जाएँ तो दोनों मिलकर दीर्घ आ, ई और ऊ, ॠ हो जाते हैं। जैसे -(क) अ/आ + अ/आ = आ
अ + अ = आ --> धर्म + अर्थ = धर्मार्थअ + आ = आ --> हिम + आलय = हिमालय
अ + आ =आ--> पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
आ + अ = आ --> विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
आ + आ = आ --> विद्या + आलय = विद्यालय
(ख) इ और ई की संधि
इ + इ = ई --> रवि + इंद्र = रवींद्र ; मुनि + इंद्र = मुनींद्रइ + ई = ई --> गिरि + ईश = गिरीश ; मुनि + ईश = मुनीश
ई + इ = ई --> मही + इंद्र = महींद्र ; नारी + इंदु = नारींदु
ई + ई = ई --> नदी + ईश = नदीश ; मही + ईश = महीश .
(ग) उ और ऊ की संधि
उ + उ = ऊ --> भानु + उदय = भानूदय ; विधु + उदय = विधूदयउ + ऊ = ऊ --> लघु + ऊर्मि = लघूर्मि ; सिधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि
ऊ + उ = ऊ --> वधू + उत्सव = वधूत्सव ; वधू + उल्लेख = वधूल्लेख
ऊ + ऊ = ऊ --> भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व ; वधू + ऊर्जा = वधूर्जा
(घ) ऋ और ॠ की संधि
ऋ + ऋ = ॠ --> पितृ + ऋणम् = पित्रणम्अन्य महत्वपूर्ण प्रष्ठ:
- स्वर संधि - अच् संधि
- दीर्घ संधि - अक: सवर्णे दीर्घ:
- गुण संधि - आद्गुण:
- वृद्धि संधि - ब्रध्दिरेचि
- यण् संधि - इकोऽयणचि
- अयादि संधि - एचोऽयवायाव:
- पूर्वरूप संधि - एडः पदान्तादति
- पररूप संधि - एडि पररूपम्
- प्रकृति भाव संधि - ईदूद्विवचनम् प्रग्रह्यम्
- व्यंजन संधि - हल् संधि
- विसर्ग संधि
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