माहेश्वर सूत्र - जनक, विवरण और इतिहास : संस्कृत व्याकरण (Maheswar Sootra)
पाणिनी के 14 माहेश्वर सूत्र : संस्कृत व्याकरण
माहेश्वर सूत्र (संस्कृत: शिवसूत्राणि या महेश्वर सूत्राणि) को संस्कृत व्याकरण का आधार माना जाता है। पाणिनि ने संस्कृत भाषा के तत्कालीन स्वरूप को परिष्कृत एवं नियमित करने के उद्देश्य से भाषा के विभिन्न अवयवों एवं घटकों यथा ध्वनि-विभाग (अक्षरसमाम्नाय), नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण), पद, आख्यात, क्रिया, उपसर्ग, अव्यय, वाक्य, लिङ्ग इत्यादि तथा उनके अन्तर्सम्बन्धों का समावेश अष्टाध्यायी में किया है। अष्टाध्यायी में 32 पाद हैं जो आठ अध्यायों मे समान रूप से विभक्त हैं।
व्याकरण के इस महनीय ग्रन्थ मे पाणिनि ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के विशाल कलेवर का समग्र एवं सम्पूर्ण विवेचन लगभग 4000 सूत्रों में किया है , जो आठ अध्यायों में (संख्या की दृष्टि से असमान रूप से) विभाजित हैं। तत्कालीन समाज मे लेखन सामग्री की दुष्प्राप्यता को ध्यान में रखते हुए पाणिनि ने व्याकरण को स्मृतिगम्य बनाने के लिए सूत्र शैली की सहायता ली है। पुनः, विवेचन को अतिशय संक्षिप्त बनाने हेतु पाणिनि ने अपने पूर्ववर्ती वैयाकरणों से प्राप्त उपकरणों के साथ-साथ स्वयं भी अनेक उपकरणों का प्रयोग किया है जिनमे शिवसूत्र या माहेश्वर सूत्र सबसे महत्वपूर्ण हैं।
माहेश्वर सूत्रों की उत्पत्ति भगवान नटराज (शिव) के द्वारा किये गये ताण्डव नृत्य से मानी गयी है।
"नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।
उद्धर्त्तुकामो सनकादिसिद्धानेतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम्॥"
अर्थात:-
- "नृत्य (ताण्डव) के अवसान (समाप्ति) पर नटराज (शिव) ने सनकादि ऋषियों की सिद्धि और कामना का उद्धार (पूर्ति) के लिये नवपञ्च (चौदह) बार डमरू बजाया। इस प्रकार चौदह शिवसूत्रों का ये जाल (वर्णमाला) प्रकट हुयी।"
- डमरु के चौदह बार बजाने से चौदह सूत्रों के रूप में ध्वनियाँ निकली, इन्हीं ध्वनियों से व्याकरण का प्रकाट्य हुआ। इसलिये व्याकरण सूत्रों के आदि-प्रवर्तक भगवान नटराज को माना जाता है।
माहेश्वर सूत्रों की कुल संख्या 14 है जो निम्नलिखित हैं:
- अ, इ ,उ ,ण्।
- ॠ ,ॡ ,क्,।
- ए, ओ ,ङ्।
- ऐ ,औ, च्।
- ह, य ,व ,र ,ट्।
- ल ,ण्
- ञ ,म ,ङ ,ण ,न ,म्।
- झ, भ ,ञ्।
- घ, ढ ,ध ,ष्।
- ज, ब, ग ,ड ,द, श्।
- ख ,फ ,छ ,ठ ,थ, च, ट, त, व्।
- क, प ,य्।
- श ,ष ,स ,र्।
- ह ,ल्।
माहेश्वर सूत्र की व्याख्या :
उपर्युक्त्त 14 सूत्रों में संस्कृत भाषा के वर्णों (अक्षरसमाम्नाय) को एक विशिष्ट प्रकार से संयोजित किया गया है। फलतः, पाणिनि को शब्दों के निर्वचन या नियमों मे जब भी किन्ही विशेष वर्ण समूहों (एक से अधिक) के प्रयोग की आवश्यकता होती है, वे उन वर्णों (अक्षरों) को माहेश्वर सूत्रों से प्रत्याहार बनाकर संक्षेप मे ग्रहण करते हैं। माहेश्वर सूत्रों को इसी कारण ‘प्रत्याहार विधायक’ सूत्र भी कहते हैं। प्रत्याहार बनाने की विधि तथा संस्कृत व्याकरण मे उनके बहुविध प्रयोगों को आगे दर्शाया गया है।
इन 14 सूत्रों में संस्कृत भाषा के समस्त वर्णों को समावेश किया गया है। प्रथम 4 सूत्रों (अइउण् – ऐऔच्) में स्वर वर्णों तथा शेष 10 सूत्र व्यञ्जन वर्णों की गणना की गयी है। संक्षेप में -
- स्वर वर्णों को अच् एवं
- व्यञ्जन वर्णों को हल् कहा जाता है।
प्रत्याहार - माहेश्वर सूत्रों की व्याख्या : संस्कृत व्याकरण
महेश्वर सूत्र 14 है। इन 14 सूत्रों में संस्कृत भाषा के वर्णों (अक्षरसमाम्नाय) को एक विशिष्ट प्रकार से संयोजित किया गया है। फलतः, महर्षि पाणिनि को शब्दों के निर्वचन या नियमों मे जब भी किन्ही विशेष वर्ण समूहों (एक से अधिक) के प्रयोग की आवश्यकता होती है, वे उन वर्णों को माहेश्वर सूत्रों से प्रत्याहार बनाकर संक्षेप में ग्रहण करते हैं। माहेश्वर सूत्रों को इसी कारण ‘प्रत्याहार विधायक’ सूत्र भी कहते हैं। प्रत्याहार बनाने की विधि तथा संस्कृत व्याकरण मे उनके बहुविध प्रयोगों को आगे दर्शाया गया है। इन 14 सूत्रों में संस्कृत भाषा के समस्त वर्णों का समावेश किया गया है। प्रथम 4 सूत्रों (अइउण् – ऐऔच्) में स्वर वर्णों तथा शेष १० सूत्रों में व्यञ्जन वर्णों की गणना की गयी है। संक्षेप में -
- स्वर वर्णों को अच् एवं
- व्यञ्जन वर्णों को हल् कहा जाता है।
अच् एवं हल् भी प्रत्याहार हैं।
आदिरन्त्येन सहेता : (आदिः) आदि वर्ण (अन्त्येन इता) अन्तिम इत् वर्ण (सह) के साथ मिलकर प्रत्याहार बनाता है जो आदि वर्ण एवं इत्सञ्ज्ञक अन्तिम वर्ण के पूर्व आए हुए वर्णों का समष्टि रूप में (collectively) बोध कराता है। उदाहरण:-
- अच् = प्रथम माहेश्वर सूत्र ‘अइउण्’ के आदि वर्ण ‘अ’ को चतुर्थ सूत्र ‘ऐऔच्’ के अन्तिम वर्ण ‘च्’ से योग कराने पर अच् प्रत्याहार बनता है। यह अच् प्रत्याहार अपने आदि अक्षर ‘अ’ से लेकर इत्संज्ञक च् के पूर्व आने वाले औ पर्यन्त सभी अक्षरों का बोध कराता है। अतः -
- अच् = अ इ उ ॠ ॡ ए ऐ ओ औ।
- इसी तरह हल् प्रत्याहार की सिद्धि 5 वे सूत्र हयवरट् के आदि अक्षर ‘ह’ को अन्तिम 14 वें सूत्र हल् के अन्तिम अक्षर ल् के साथ मिलाने (अनुबन्ध) से होती है। फलतः -
- हल् = ह य व र, ल, ञ म ङ ण न, झ भ, घ ढ ध, ज ब ग ड द, ख फ छ ठ थ च ट त, क प, श ष, स, ह।
उपर्युक्त सभी 14 सूत्रों में अन्तिम वर्ण की इत् संज्ञा श्री पाणिनि ने की है। इत् संज्ञा होने से इन अन्तिम वर्णों का उपयोग प्रत्याहार बनाने के लिए केवल अनुबन्ध (Bonding) हेतु किया जाता है, किन्तु व्याकरणीय प्रक्रिया मे इनकी गणना नही की जाती है अर्थात् इनका प्रयोग नही होता है।
इन सूत्रों से कुल 41 प्रत्याहार बनते हैं। एक प्रत्याहार उणादि सूत्र (१.११४) से "ञमन्ताड्डः" से ञम् प्रत्याहार और एक वार्तिक से "चयोः द्वितीयः शरि पौष्करसादेः" (८.४.४७) से बनता है। इस प्रकार कुल 43 प्रत्याहार हो जाते हैं।
इन सूत्रों से सैंकडों प्रत्याहार बन सकते हैं, किन्तु पाणिनि मुनि ने अपने उपयोग के लिए 41 प्रत्याहारों का ही ग्रहण किया है। प्रत्याहार दो तरह से दिखाए जा सकते हैंः-
- अन्तिम अक्षरों के अनुसार।
- आदि अक्षरों के अनुसार।
इनमें अन्तिम अक्षर से प्रत्याहार बनाना अधिक उपयुक्त है और अष्टाध्यायी के अनुसार है।
अन्तिम अक्षर के अनुसार प्रत्याहार सूत्र -
1 अइउण्---इससे एक प्रत्याहार बनता है।
- "अण्"--उरण् रपरः
2- ऋलृक्---इससे तीन प्रत्याहार बनते हैं।
- "अक्"--अकः सवर्णे दीर्घः
- "इक्"--इको गुणवृद्धी
- "उक्"--उगितश्च
3- एओङ्---इससे एक प्रत्याहार बनता है।
- "एङ्"--एङि पररूपम्
4- ऐऔच्---इससे चार प्रत्याहार बनते है-
- "अच्" अचोSन्त्यादि टि
- "इच्"- इच एकाचोSम्प्रत्ययवच्च
- "एच्"--एचोSयवायावः
- "ऐच्"---वृद्धिरादैच्
5- हयवरट्---इससे एक प्रत्याहार बनता है-
- "अट्"--शश्छोSटि ,
6- लण्--इससे तीन प्रत्याहार बनते है-
- "अण्"--अणुदित्सवर्णस्य चाप्रत्ययः
- "इण्"---इण्कोः
- "यण्"--इको यणचि
7- ञमङणनम्--इससे चार प्रत्याहार बनते है-
- "अम्"--पुमः खय्यम्परे
- "यम्"---हलो यमां यमि लोपः
- "ङम्"--ङमो ह्रस्वादचि ङमुण् नित्यम्
- "ञम्"--ञमन्ताड्डः (उणादि सूत्र)
8- झभञ्---इससे एक प्रत्याहार बनता है-
- "यञ्"---अतो दीर्घो यञि
9- घढधष्--इससे दो प्रत्याहार बनते है-
- "झष्"
- "भष्"---एकाचो बशो भष् झषन्तस्य स्ध्वोः
10- जबगडदश्---इससे छः प्रत्याहार बनते है-
- "अश्"--भोभगोSघो अपूर्वस्य योSशि
- "हश्"--हशि च
- "वश्"--नेड् वशि कृति
- "झश्"
- "जश्"--झलां जश् झशि
- "बश्"--एकाचो बशो भष् झषन्तस्य स्ध्वोः
11- खफछठथचटतव्---इससे केवल एक प्रत्याहार बनेगा:-
- छव् --- "नश्छव्यप्रशान्"
12- कपय्---इससे 5 प्रत्याहार बनेंगे-
- यय्---"अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः"
- मय्---"मय उञो वो वा"
- झय्---"झयो होSन्यतरस्याम्"
- खय्---"पुमः खय्यम्परे"
- चय्---"चयो द्वितीयः शरि पौष्करसादेः"
13- शषसर्---इस सूत्र से 5 प्रत्याहार बनेंगेः-
- यर्---"यरोSनुनासिकेSनुनासिको वा"
- झर्--"झरो झरि सवर्णे"
- खर्---"खरि च"
- चर्--"अभ्यासे चर्च"
- शर्--"वा शरि"
14- हल्---इस सूत्र से 6 प्रत्याहार बनेंगेः-
- अल्--- "अलोSन्त्यात् पूर्व उपधा" अल्- प्रत्याहार में प्रारम्भिक अ वर्ण और अन्तिम वर्ण ल् से "अल्" प्रत्याहार बनता है । अल् कहने से सभी वर्ण गृहीत होंगे ।
- हल्--- "हलोSनन्तराः संयोगः" हल् - प्रत्याहार में "हयवरट्" के "ह" से लेकर "हल्" के "ल्" तक सभी वर्ण गृहीत होंगे । "हल्" प्रत्याहार में सभी व्यञ्जन वर्ण आ जाते हैं ।
- वल्---"लोपो व्योर्वलि"
- रल्---"रलो व्युपधाद्धलादेः संश्च"
- झल्---"झलो झलि"
- शल्---"शल इगुपधादनिटः क्सः"
इस प्रकार कुल 43 प्रत्याहार अन्तिम वर्ण से बनाए गए ।
आदि वर्ण से भी ये 43 प्रत्याहार बनाकर दिखायेंगे ।
- अकार वर्ण से 8 प्रत्याहार बनेंगेः-- अण्, अक्, अच्, अट्, अण्, अम्, अश्, अल् ।
- इकार से तीन प्रत्याहार बनते हैंः- इक्, इच्, इण् ।
- उकार से एकः- उक् ।
- एकार से दो:- एङ् , एच् ।
- ऐकार से एक---ऐच् ।
- हकार से दो---हश्, हल् ।
- यकार से पाँच---यण्, यम्, यञ्, यय्, यर् ।
- वकार से दो---वश्, वल् ।
- रेफ से एक---रल् ।
- मकार से एक---मय् ।
- ङकार से एक---ङम् ।
- झकार से पाँच---झष्, झश्, झय्, झर्, झल् ।
- भकार से एक---भष् ।
- जकार से एक--जश् ।
- बकार से एक--- बश् ।
- छकार से एक---छव् ।
- खकार से दो---खय्, खर् ।
- चकार से एक---चर् ।
- शकार से दो----शर्, शल् ।
ये कुल 41 प्रत्याहार हुए और ऊपर दो अन्य प्रत्याहार भी बताएँ हैं ।
एक प्रत्याहार उणादि से "ञमन्ताड्डः" से ञम् प्रत्याहार और एक वार्तिक से "चयोः द्वितीयः शरि पौष्करसादेः" से बनता है। इस प्रकार कुल 43 प्रत्याहार हो जाते हैं।
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