यण् संधि - इकोऽयणचि, संस्कृत व्याकरण
इस पृष्ठ पर हम यण् संधि का अध्ययन करेंगे !
इ + अ = य् + अ --> यदि + अपि = यद्यपि
ई + आ = य् + आ --> इति + आदि = इत्यादि।
ई + अ = य् + अ --> नदी + अर्पण = नद्यर्पण
ई + आ = य् + आ --> देवी + आगमन = देव्यागमन
उ + अ = व् + अ --> अनु + अय = अन्वय
उ + आ = व् + आ --> सु + आगत = स्वागत
उ + ए = व् + ए --> अनु + एषण = अन्वेषण
यण् संधि के चार नियम होते हैं!
(क) इ, ई के आगे कोई विजातीय (असमान) स्वर होने पर इ ई को ‘य्’ हो जाता है।
इ + आ = य् --> अति + आचार: = अत्याचार:इ + अ = य् + अ --> यदि + अपि = यद्यपि
ई + आ = य् + आ --> इति + आदि = इत्यादि।
ई + अ = य् + अ --> नदी + अर्पण = नद्यर्पण
ई + आ = य् + आ --> देवी + आगमन = देव्यागमन
(ख) उ, ऊ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर उ ऊ को ‘व्’ हो जाता है।
उ + आ = व् --> सु + आगतम् = स्वागतम्उ + अ = व् + अ --> अनु + अय = अन्वय
उ + आ = व् + आ --> सु + आगत = स्वागत
उ + ए = व् + ए --> अनु + एषण = अन्वेषण
(ग) ‘ऋ’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ को ‘र्’ हो जाता है। इन्हें यण-संधि कहते हैं।
ऋ + अ = र् + आ --> पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा(घ) ‘ल्र’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ को ‘ल्’ हो जाता है। इन्हें यण-संधि कहते हैं।
ल्र + आ = ल् --> ल्र + आक्रति = लाक्रतिअन्य महत्वपूर्ण प्रष्ठ:
- स्वर संधि - अच् संधि
- दीर्घ संधि - अक: सवर्णे दीर्घ:
- गुण संधि - आद्गुण:
- वृद्धि संधि - ब्रध्दिरेचि
- यण् संधि - इकोऽयणचि
- अयादि संधि - एचोऽयवायाव:
- पूर्वरूप संधि - एडः पदान्तादति
- पररूप संधि - एडि पररूपम्
- प्रकृति भाव संधि - ईदूद्विवचनम् प्रग्रह्यम्
- व्यंजन संधि - हल् संधि
- विसर्ग संधि
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